Sunday, October 7, 2012

" जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी"




मुद्दते हो गयी है अपने गाँव अपने शहर अपनी माटी से दूर आये, ऐसा नहीं है के एकदम दूर हो गये है अपनी माटी से, चले जाते है कभी कभी मेहमानों की तरह  सा नहीं पाया हूँ के मुझे कहाँ होना चाहिए पर जब भी कहीं मोर की आवाज़ सुनाई पड़ जाती है या कही कोई कव्वा बोल पड़ता है या कहीं दूर केशरिया बलमा का अलाप सुनई पड़ जाता है तो  तो एक खलिश सी एक टीश ,एक दर्द सा उभर आता है वो मेरा घर, आंगन ,बस घूम जाते है आँखों के सामने ।
कई बार खिंच ले जाती है उस माटी की खुश्बू फिर से उन्ही रेतीले धोरों पर कभी शरीर से तो कभी मन से .....
हर बार यही लगता है के नेपथ्य से  कोई पुकार रहा है मुझे मांड के स्वरों में "केशरिया बलमा .....आओ नी पधारो म्हारे देश".
शायद यही भावना भगवान राम से ये कहलवाती है के " जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी" ।।

कुछ झलक मेरे शहर की:



 


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